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Chhath Puja

Chhath Puja
chhath puja

नवरात्र, दूर्गा पूजा की तरह छठ पूजा भी हिंदूओं का प्रमुख त्यौहार है। क्षेत्रीय स्तर पर बिहार में इस पर्व को लेकर एक अलग ही उत्साह देखने को मिलता है। छठ पूजा मुख्य रूप से सूर्यदेव की उपासना का पर्व है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार छठ को सूर्य देवता की बहन हैं। मान्यता है कि छठ पर्व में सूर्योपासना करने से छठ माई प्रसन्न होती हैं और घर परिवार में सुख शांति व धन धान्य से संपन्न करती हैं।
छठ देवी को सूर्य देव की बहन बताया जाता है। लेकिन छठ व्रत कथा के अनुसार छठ देवी ईश्वर की पुत्री देवसेना बताई गई हैं। देवसेना अपने परिचय में कहती हैं कि वह प्रकृति की मूल प्रवृति के छठवें अंश से उत्पन्न हुई हैं यही कारण है कि मुझे षष्ठी कहा जाता है। देवी कहती हैं यदि आप संतान प्राप्ति की कामना करते हैं तो मेरी विधिवत पूजा करें। यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को करने का विधान बताया गया है।
पौराणिक ग्रंथों में इस रामायण काल में भगवान श्री राम के अयोध्या आने के पश्चात माता सीता के साथ मिलकर कार्तिक शुक्ल षष्ठी को सूर्योपासना करने से भी जोड़ा जाता है, महाभारत काल में कुंती द्वारा विवाह से पूर्व सूर्योपासना से पुत्र की प्राप्ति से भी इसे जोड़ा जाता है।
सूर्यदेव के अनुष्ठान से उत्पन्न कर्ण जिन्हें अविवाहित कुंती ने जन्म देने के बाद नदी में प्रवाहित कर दिया था वह भी सूर्यदेव के उपासक थे। वे घंटों जल में रहकर सूर्य की पूजा करते। मान्यता है कि कर्ण पर सूर्य की असीम कृपा हमेशा बनी रही। इसी कारण लोग सूर्यदेव की कृपा पाने के लिये भी कार्तिक शुक्ल षष्ठी को सूर्योपासना करते हैं।



छठ पूजा भगवान सूर्य को समर्पित है. छठ पूजा के चार दिनों के दौरान भगवान सूर्य की पूजा की जाती है. छठ पूजा का उपवास मुख्य रूप से महिलाऐं परिवार की खुशी के लिए ये व्रत करती है. छठ पूजा मुख्य रूप से बिहार के लोग और नेपाल के लोग मनाते है. सूर्य भगवान की पूजा चार दिनों तक होती है. छठ का पहला दिन नाह खाई के नाम से जाना जाता है. जल निकाय में विशेष रूप से गंगा नदी में पवित्र डुबकी, इस दिन ली जाती है. छठ का निरीक्षण करने वाली महिलाएं इस दिन केवल एक ही भोजन लेती हैं. छठ पूजा को प्रतिहार, दला छठ, छठी और सूर्य शास्त्री के नाम से भी जाना जाता है
छठ का त्यौहार सूर्योपासना का पर्व होता है. छठ का त्यौहार सूर्य की आराधना का पर्व है, प्रात:काल में सूर्य की पहली किरण और सायंकाल में सूर्य की अंतिम किरण को अघ्र्य देकर दोनों का नमन किया जाता है. सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इसे छठ कहा गया है, सुख-स्मृद्धि तथा मनोकामनाओं की पूर्ति का यह त्यौहार सभी समान रूप से मनाते हैं. प्राचीन धार्मिक संदर्भ में यदि इस पर दृष्टि डालें तो पाएंगे कि छठ पूजा का आरंभ महाभारत काल के समय से देखा जा सकता है. छठ देवी सूर्य देव की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए भगवान सूर्य की आराधना कि जाती है तथा गंगा-यमुना या किसी भी पवित्र नदी या पोखर के किनारे पानी में खड़े होकर यह पूजा संपन्न कि जाती है.
छठ पूजा के चार दिनों के दौरान भगवान सूर्य की पूजा की जाती है. छठ पूजा का पहला दिन 11 नवंबर को सूर्य नाह खाई मनाया जाता हैं. 12 नवंबर को लोहांडा और खरना मनाया जाता हैं. 13 नवंबर को छठ पूजा, संध्या अरघ्या होता हैं और अंतिम दिन 14 नवंबर को उषा अरघ्या, परना दिवस होती हैं.
छठ पूजा चार दिनों का अत्यंत कठिन और महत्वपूर्ण महापर्व होता है. इसका आरंभ कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से होता है और समाप्ति कार्तिक शुक्ल सप्तमी को होती है इस लम्बे अंतराल में व्रतधारी पानी भी ग्रहण नहीं करता. बिहार और उत्तर प्रदेश के पूर्वी इलाकों में छठ पर्व पूर्ण श्रद्धा के साथ मनाया जाता है. छठ त्यौहार के समय बाजारों में जमकर खरीदारी होती है लोग इसके लिए खासकर फल, गन्ना, डाली और सूप आदि जमकर खरीदते हैं.
छठ पूजा का आयोजन बिहार व पूर्वी उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त देश के कोने-कोने में देखा जा सकता है.  देश-विदेशों में रहने वाले लोग भी इस पर्व को बहुत धूम धाम से मनाते हैं. मान्यता अनुसार सूर्य देव और छठी मइया भाई-बहन है, छठ व्रत नियम तथा निष्ठा से किया जाता है  भक्ति-भाव से किए गए इस व्रत द्वारा नि:संतान को संतान सुख प्राप्त होता है. इसे करने से धन-धान्य की प्राप्ति होती है तथा जीवन सुख-समृद्धि से परिपूर्ण रहता है. छठ के दौरान लोग सूर्य देव की पूजा करतें हैं , इसके लिए जल में खड़े होकर कमर तक पानी में डूबे लोग, दीप प्रज्ज्वलित किए नाना प्रसाद से पूरित सूप उगते और डूबते सूर्य को अर्ध्य देते हैं और छठी मैया के गीत गाए जाते हैं.


छठपूजा का पहला दिन
नहाय खाये दिवस के लिए पंचांग
11 (रविवार) चतुर्थी
नाह खाई
06:44 पर सूर्योदय
सूर्यास्त 18:01 पर
छठपूजा का दूसरा दिन
छठ का दूसरा दिन खारना के रूप में बनाया जाता है. इस दिन सूर्योउदय से सूर्यास्त तक पानी के बिना उपवास रखा जाता है. सूर्य भगवान को भोजन देने के बाद सूर्यास्त के बाद उपवास टूट जाता है. दूसरे दिन प्रसाद होने के बाद तीसरा दिन उपवास शुरू होता है.
लोहंडाऔर खारना दिवस के लिए पंचांग
12 (सोमवार) पंचमी
लोहांडा और खरना
06:44 पर सूर्योदय
सूर्यास्त 18:01 पर
छठपूजा का तीसरा दिन
छठ पूजा के तीसरे मुख्य दिन पानी के बिना एक पूर्ण दिन उपवास मनाया जाता है. सूर्य की स्थापना सूर्य को दिन का मुख्य अनुष्ठान प्रदान करते है. तीसरे दिन उपवास पूरे रात जारी रहता है. सूर्योदय के बाद अगले दिन पूजा की जाती है.
छठपूजा दिवस के लिए पंचांग
13 (मंगलवार) षष्ठी
छठ पूजा, संध्या अरघ्या
06:45 पर सूर्योदय
सूर्यास्त 18:01 पर
छठपूजा का चौथा दिन
छठ के चौथे और अंतिम दिन, अर्घ्य को उगते सूरज को दिया जाता है और इसे उषा अरघ्य के नाम से जाना जाता है. अरघ्या सूर्य को दिए जाने के बाद 36 घंटे लंबा उपवास टूट गया है.
उषा अरघ्या का दिवस
14 (बुधवार) को होगा अंतिम दिन
सप्तमी
उषा अरघ्या, परना दिवस
06:45 पर सूर्योदय
सूर्यास्त 18:00 बजे

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