Govardhan Puja
govardhan pooja |
गाय को देवी
लक्ष्मी का स्वरूप भी कहा गया है। इस दिन बलि पूजा, अन्न कूट, मार्गपाली आदि उत्सव भी सम्पन्न होते है।
अन्नकूट या गोवर्धन पूजा भगवान कृष्ण के
अवतार के बाद द्वापर युग से प्रारम्भ हुई। कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन गोवर्धन की पूजा की जाती है|
गोवर्धन पूजा
अथवा अन्न कूट हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। यह कृषि एवं धन संबंधी पर्व
कार्तिक प्रतिपदा को पड़ता है, जो दीपावली के
दूसरे दिन सायंकाल ब्रज में गोवर्धन पूजा का विशेष आयोजन होता है। भगवान श्रीकृष्ण
ने आज ही के दिन इन्द्र का मानमर्दन कर गिरिराज पूजन किया था। इस दिन मन्दिरों में
अन्नकूट किया जाता है। सायंकाल गोबर के गोवर्धन बनाकर पूजा की जाती है।
धार्मिक मान्यता
वेदों में इस दिन
वरुण, इन्द्र, अग्नि आदि देवताओं की पूजा का विधान है। इसी
दिन बलि पूजा, गोवर्धन पूजा,
मार्गपाली आदि होते हैं। इस दिन गाय-बैल आदि
पशुओं को स्नान कराकर, फूल माला,
धूप, चंदन आदि से उनका पूजन किया जाता है। गायों को मिठाई खिलाकर उनकी आरती उतारी
जाती है। यह ब्रजवासियों का मुख्य त्योहार है। अन्नकूट या गोवर्धन पूजा भगवान
कृष्ण के अवतार के बाद द्वापर युग से प्रारम्भ हुई। उस समय लोग इन्द्र भगवान की
पूजा करते थे तथा छप्पन प्रकार के भोजन बनाकर तरह-तरह के पकवान व मिठाइयों का भोग
लगाया जाता था। ये पकवान तथा मिठाइयां इतनी मात्रा में होती थीं कि उनका पूरा
पहाड़ ही बन जाता था।
अन्न कूट
अन्न कूट एक
प्रकार से सामूहिक भोज का आयोजन है जिसमें पूरा परिवार और वंश एक जगह बनाई गई रसोई
से भोजन करता है। इस दिन चावल, बाजरा, कढ़ी, साबुत मूंग, चौड़ा तथा सभी
सब्जियां एक जगह मिलाकर बनाई जाती हैं। मंदिरों में भी अन्नकूट बनाकर प्रसाद के
रूप में बांटा जाता है।
पूजन विधि
• इस दिन प्रात: गाय के गोबर से गोवर्धन बनाया
जाता है। अनेक स्थानों पर इसके मनुष्याकार बनाकर पुष्पों, लताओं आदि से सजाया जाता है। शाम को गोवर्धन की पूजा की
जाती है। पूजा में धूप, दीप, नैवेद्य, जल, फल, फूल, खील, बताशे आदि का प्रयोग किया
जाता है।
• गोवर्धन में ओंगा (अपामार्ग) अनिवार्य रूप से
रखा जाता है।
• पूजा के बाद गोवर्धनजी के सात परिक्रमाएं उनकी
जय बोलते हुए लगाई जाती हैं। परिक्रमा के समय एक व्यक्ति हाथ में जल का लोटा व
अन्य खील (जौ) लेकर चलते हैं। जल के लोटे वाला व्यक्ति पानी की धारा गिराता हुआ
तथा अन्य जौ बोते हुए परिक्रमा पूरी करते हैं।
• गोवर्धनजी गोबर से लेटे हुए पुरुष के रूप में
बनाए जाते हैं। इनकी नाभि के स्थान पर एक कटोरी या मिट्टी का दीपक रख दिया जाता
है। फिर इसमें दूध, दही, गंगाजल, शहद, बताशे आदि पूजा
करते समय डाल दिए जाते हैं और बाद में इसे प्रसाद के रूप में बांट देते हैं।
• अन्नकूट में चंद्र-दर्शन अशुभ माना जाता है।
यदि प्रतिपदा में द्वितीया हो तो अन्नकूट अमावस्या को मनाया जाता है।
• इस दिन प्रात:तेल मलकर स्नान करना चाहिए।
• इस दिन पूजा का समय कहीं प्रात:काल है तो कहीं
दोपहर और कहीं पर सन्ध्या समय गोवर्धन पूजा की जाती है।
• इस दिन सन्ध्या के समय दैत्यराज बलि का पूजन भी
किया जाता है।
• गोवर्धन गिरि भगवान के रूप में माने जाते हैं
और इस दिन उनकी पूजा अपने घर में करने से धन, धान्य, संतान और गोरस की
वृद्धि होती है। आज का दिन तीन उत्सवों का संगम होता है।
• इस दिन दस्तकार और कल-कारखानों में कार्य करने
वाले कारीगर भगवान विश्वकर्मा की पूजा भी करते हैं। इस दिन सभी कल-कारखाने तो
पूर्णत: बंद रहते ही हैं, घर पर कुटीर
उद्योग चलाने वाले कारीगर भी काम नहीं करते। भगवान विश्वकर्मा और मशीनों एवं उपकरणों
का दोपहर के समय पूजन किया जाता है।
गोबर्धन पूजा की
कथा
एक बार एक महर्षि
ने ऋषियों से कहा कि कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को गोवर्धन व अन्नकूट की पूजा
करनी चाहिए। तब ऋषियों ने महर्षि से पूछा-' अन्नकूट क्या है? गोवर्धन कौन हैं? इनकी पूजा क्यों
तथा कैसे करनी चाहिए? इसका क्या फल
होता है? इस सबका विधान विस्तार से
कहकर कृतार्थ करें।'
महर्षि बोले- 'एक समय की बात है- भगवान श्रीकृष्ण अपने सखा और
गोप-ग्वालों के साथ गाय चराते हुए गोवर्धन पर्वत की तराई में पहुंचे। वहां पहुंचकर
उन्होंने देखा कि हज़ारों गोपियां 56 (छप्पन) प्रकार के भोजन रखकर बड़े उत्साह से नाच-गाकर उत्सव मना रही थीं। पूरे
ब्रज में भी तरह-तरह के मिष्ठान्न तथा पकवान बनाए जा रहे थे। श्रीकृष्ण ने इस
उत्सव का प्रयोजन पूछा तो गोपियां बोली-'आज तो घर-घर में यह उत्सव हो रहा होगा, क्योंकि आज वृत्रासुर को मारने वाले मेघदेवता, देवराज इन्द्र का पूजन होगा। यदि वे प्रसन्न हो
जाएं तो ब्रज में वर्षा होती है, अन्न पैदा होता
है, ब्रजवासियों का भरण-पोषण
होता है, गायों का चारा मिलता है
तथा जीविकोपार्जन की समस्या हल होती है।
यह सुनकर
श्रीकृष्ण ने कहा- 'यदि देवता
प्रत्यक्ष आकर भोग लगाएं, तब तो तुम्हें यह
उत्सव व पूजा ज़रूर करनी चाहिए।' गोपियों ने यह
सुनकर कहा- 'कोटि-कोटि
देवताओं के राजा देवराज इन्द्र की इस प्रकार निंदा नहीं करनी चाहिए। यह तो
इन्द्रोज नामक यज्ञ है। इसी के प्रभाव से अतिवृष्टि तथा अनावृष्टि नहीं होती।'
श्रीकृष्ण बोले- 'इन्द्र में क्या शक्ति है, जो पानी बरसा कर हमारी सहायता करेगा? उससे अधिक शक्तिशाली तो हमारा यह गोवर्धन पर्वत
है। इसी के कारण वर्षा होती है। अत: हमें इन्द्र से भी बलवान गोवर्धन की पूजा करनी
चाहिए।' इस प्रकार भगवान
श्रीकृष्ण के वाक-जाल में फंसकर ब्रज में इन्द्र के स्थान पर गोवर्धन की पूजा की
तैयारियां शुरू हो गईं। सभी गोप-ग्वाल अपने-अपने घरों से सुमधुर, मिष्ठान्न पकवान लाकर गोवर्धन की तलहटी में
श्रीकृष्ण द्वारा बताई विधि से गोवर्धन पूजा करने लगे।
उधर श्रीकृष्ण ने
अपने आधिदैविक रूप से पर्वत में प्रवेश करके ब्रजवासियों द्वारा लाए गए सभी
पदार्थों को खा लिया तथा उन सबको आशीर्वाद दिया। सभी ब्रजवासी अपने यज्ञ को सफल
जानकर बड़े प्रसन्न हुए। नारद मुनि इन्द्रोज यज्ञ देखने की इच्छा से वहां आए।
गोवर्धन की पूजा देखकर उन्होंने ब्रजवासियों से पूछा तो उन्होंने बताया- 'श्रीकृष्ण के आदेश से इस वर्ष इन्द्र महोत्सव
के स्थान पर गोवर्धन पूजा की जा रही है।' यह सुनते ही नारद उल्टे पांव इन्द्रलोक पहुंचे तथा उदास तथा खिन्न होकर बोले-'हे राजन! तुम महलों में सुख की नींद सो रहे हो,
उधर गोकुल के निवासी गोपों ने इद्रोज बंद करके
आप से बलवान गोवर्धन की पूजा शुरू कर दी है। आज से यज्ञों आदि में उसका भाग तो हो
ही गया। यह भी हो सकता है कि किसी दिन श्रीकृष्ण की प्रेरणा से वे तुम्हारे राज्य
पर आक्रमण करके इन्द्रासन पर भी अधिकार कर लें।'
नारद तो अपना काम
करके चले गए। अब इन्द्र क्रोध में लाल-पीले हो गए। ऐसा लगता था, जैसे उनके तन-बदन में अग्नि ने प्रवेश कर लिया
हो। इन्द्र ने इसमें अपनी मानहानि समझकर, अधीर होकर मेघों को आज्ञा दी- 'गोकुल में जाकर
प्रलयकालिक मूसलाधार वर्षा से पूरा गोकुल तहस-नहस कर दें, वहां प्रलय का सा दृश्य उत्पन्न कर दें।' पर्वताकार प्रलयंकारी मेघ ब्रजभूमि पर जाकर
मूसलाधार बरसने लगे। कुछ ही पलों में ऐसा दृश्य उत्पन्न हो गया कि सभी बाल-ग्वाल
भयभीत हो उठे। भयानक वर्षा देखकर ब्रजमंडल घबरा गया। सभी ब्रजवासी श्रीकृष्ण की
शरण में जाकर बोले- 'भगवन! इन्द्र
हमारी नगरी को डुबाना चाहता है, आप हमारी रक्षा
कीजिए।'
गोप-गोपियों की
करुण पुकार सुनकर श्रीकृष्ण बोले- 'तुम सब गऊओं सहित
गोवर्धन पर्वत की शरण में चलो। वही सब की रक्षा करेंगे।' कुछ ही देर में सभी गोप-ग्वाल पशुधन सहित गोवर्धन की तलहटी
में पहुंच गए। तब श्रीकृष्ण ने गोवर्धन को अपनी कनिष्ठा अंगुली पर उठाकर छाता सा
तान दिया और सभी गोप-ग्वाल अपने पशुओं सहित उसके नीचे आ गए। सात दिन तक
गोप-गोपिकाओं ने उसी की छाया में रहकर अतिवृष्टि से अपना बचाव किया। सुदर्शन चक्र
के प्रभाव से ब्रजवासियों पर एक बूंद भी जल नहीं पड़ा। इससे इन्द्र को बड़ा
आश्चर्य हुआ। यह चमत्कार देखकर और ब्रह्माजी द्वारा श्रीकृष्ण अवतार की बात जानकर
इन्द्र को अपनी भूल पर पश्चाताप हुआ। वह स्वयं ब्रज गए और भगवान कृष्ण के चरणों
में गिरकर अपनी मूर्खता पर क्षमायाचना करने लगे। सातवें दिन श्रीकृष्ण ने गोवर्धन
को नीचे रखा और ब्रजवासियों से कहा- 'अब तुम प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा कर अन्नकूट का पर्व मनाया करो।' तभी से यह उत्सव (पर्व) अन्नकूट के नाम से
मनाया जाने लगा।
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